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Sunday, November 12, 2017

भारत के मुलनिवासी

मुसलमान भारत के मुलनिवासी है और ब्राम्हण विदेशी हैं: मौलाना सज्जाद नौमानी, वामन मेश्राम BAMCEF

https://www.theresistancenews.com/india/brahman-foreigner-muslims-mulniwasi-says-maulana-sajjad-nomani-waman-meshram/

भारत मुक्ति मोर्चा सम्मेलन में बोलते हुए बामसेफ प्रमुख वामन मेश्राम और मौलाना सज्जाद नोमानी ने मीडिया को चैलेंज करते हुए कहा कि  मेरा भारत के सभी पत्रकार और मीडीया को चैलेंज है कि अगर आपके शरीर मे कोई एक बुंद खुन मै भी इमानदारी बची हो तो अपने चैनल पर इस विषय की चर्चा सत्र का आयोजन करें।

भारत की जनता को जानने दो सत्य क्या है ?

आप कितने दीन तक इस सच्चाई से भागोगे ?

इतना बडा आरोप ब्राम्हणो पर लगाया जा रहा हे तो ब्राम्हणो ने यह सिद्ध करना चाहीये कि वो विदेशी नही हैं। ब्राम्हणो को इस सांगीन आरोप के विरोध मे न्यायालय जाना चाहिए। पर अश्चर्य इस विषय पर RSS, BJP भी खामोश है । तीन तलाक, घर वापसी, लव जिहाद, सोनु निगम से गंभीर विषय यह है कि ब्राह्मण विदेशी है या स्वदेशी?

अगर विदेशी है तो फिर भारत पर राज कैसे कर रहा है ?

अगर ब्राह्मण विदेशी नही है तो फिर आरोप लगने पर वो खामोश क्यों है? मुसलमानों पर जब- जब झूठे आरोप लगते है सारी मुस्लिम संघटनाए, धर्म गुरू , नेता उस आरोप का पूरी शक्ति से खंडन करते है। परंतु ब्राह्मणो को विदेशी कहने पर किसीने भी इस आरोप का खंडन नही किया है। जान बूझकर यह विषय  टाला जाता है क्यो ?

अगर हा तो फिर क्यों टाला जाता है?  किसी भी ब्राह्मण की TC पर जाती ब्राह्मण ही लीखी होती है। ब्राह्मण जाति हिन्दू नही लिखता। यानी ब्राह्मण हिन्दू नही है और  शुद्र भी नही है।

फिर अखिर यह ब्राह्मण है कौन ?

ब्राह्मणों का हिंदुओं के शैक्षणिक, सामाजिक और आर्थिक समस्या के समाधान के लिय आज तक का क्या योगदान है? आज हिन्दू किसान भूख से परेशान होकर खुदकुशी कर रहा है। संसद भवन के सामने (तमीळनाडू) किसान अपनी पीड़ा से अवगत कराने के लिए पुरा नंगा हो चुका है।

यहाँ तक कि मल मूत्र पीकर अपना दुख बताने पर मजबुर हुआ। फिर भी ब्राह्मणों की पेशानी पर कोई बल नही पडता। आखिर क्या बात है कि ब्राह्मण हिंदू किसान की पीड़ा देखकर भी व्यथित नहीं होते? आज लाखों हिंदू किसान खदकुशी कर रहे हैं, बच्चे कुपोषण से मर रहे हैं। इलाज के लिय पैसे नहीं हैं। इसलिए गरीब  अस्पताल के बाहर तड़प कर मर रहा है। करोडो हिंदू युवक बेरोजगार हैं।

इन सारी हिंदुओं की समस्या के ननिवारण  में ब्राह्मणों का क्या योगदान है? आजतक कभी ब्राह्मण महासभा ने हिन्दुओ के सामाजिक, शैक्षणिक आर्थिक विकास के लिय कोई हिंदू विकास परिषद का आयोजन किया क्या?

अगर नहीं तो क्यों नहीं किया?

ब्राह्मणों को हिंदूओ का विकास नहीं करना है क्या? हिंदू अपने कोई लगते नहीं क्या? या फिर ब्राह्मण ही यहाँ भारत का मूलनिवासी ना होने से हिन्दुओ  को मरता हुवा देख उन्हे कोई दुख नही होता?

इसलिए कि हिंदूओ से  सिर्फ सांप्रदायिक दंगे ही कराना है क्या? फिर मराठा हिंदूओ के आरक्षण के लिय पाकिस्तान आंदोलन करेगा क्या? धनगर हिंदूओ को आरक्षण दिया जाये इसके लिए अफगाणिस्तान उपोषण करेगा क्या? हचकर, जाट, पटेल, गुज्जर, यादव आदि को आरक्षण मिले इसके लिए इराक ने मोर्चे निकालने चाहिए क्या?

मंडल आयोग ने कहा कि  OBC की जातिवार जनगणना, इसके लिए दुबई के लोग जेल भरो आंदोलन करेंगे क्या? नही हरगिज नहीं भारत की जनता की समस्या के लिय विदेशी क्यों आंदोलन करेंगे? भारत की जनता की पीड़ा से विदेशियों को क्या लेना?

अगर ब्राह्मण भारत के मूलनिवासी हैं तो वो हिंदूओ के आंदोलन को समर्थन क्यों नही देते?

अगर हिंदू ब्राह्मणों के कहने पर दंगे कर सकते हैं, तो फिर ब्राह्मण हिंदूओ के आरक्षण के लिए किसानों के कर्ज माफी के लिय आंदोलन क्यों नहीं कर सकते? जब सत्ता ही ब्राह्मणों के पास है फिर हिंदू किसानो को क्यों आत्महत्याएँ करनी पड़ रही हैं? क्यों मराठा, जाट, पटेल, धनगर, गुज्जर रास्ते पर आ रहे हैं?

हिंदूओ को आरक्षण देने से कौन सा मुसलमान ब्राम्हणों को रोक रहा है? अब इस पर भी कोई मुस्लिम हिंदूओ के आरक्षण के सभर्थन में आता है तो ब्राह्मण कहते है इन्हें पाकिस्तान भेज दो।

अगर मुसलमान यह कहता है कि किसानो कर्ज माफी होना चाहिए। तो वे कहते है मुसलमान आतंकवादी है, देशद्रोही है इन्हें पाकिस्तान भेज दो। अब हिंदूओ के समर्थन मे ब्राह्मण भी नही आयेगा और मुसलमानों को भी नही बोलने  देगा, तो क्या हिंदूओ के समर्थन मे चीन, जापान बोलेंगे क्या?

बात स्पष्ट है जिनके पुर्वजो ने महात्मा बस्वेश्वर महाराज को नही स्वीकारा, संत तुकाराम, संत कबीर, संत रविदास, छत्रपति शिवाजी महाराज, संभाजी महाराज, शाहु महाराज, महात्मा फुलेजी, सावित्री मॉ फुले, बाबासाहेब अंबेडकरजी को नही स्वीकारा, उनके वारिस हमे स्वीकार करेंगे क्या?

ब्राह्मणों को मुख्तार अब्बास नकवी, शाह नवाज हुसैन जैसा मनुवादी मुसलमान दामाद तो चलता है लेकीन शिव-शाहु-फुले-अंबेडकरजी के बहुजन विचार धारा का मुसलमान नही चलता।

(नोट- आज तक भारत के किसी भी ब्राह्मण ने मुख्तार अब्बास नक़वी और शाह नवाज हुसैन जैसे मुसलमान दामादो का विरोध नही किया है। किसी ने यह नही कहा के यह लव जिहादी है इन्हें पाकिस्तान भेज दो। याने जो दामाद है उन्हें रहने दो और जो दामाद नही है उन्हें पाकिस्तान भेज दो? यानी भारत मे मुसलमानों को अगर रहना होगा तो उन्हें ब्राह्मणों का दामाद बनना ही होगा?)

मेरा उद्देश्य यह है के अब यह बात साफ होनी चाहिए कि हिंदू-मुस्लिम और ब्राह्मण-हिंदू संबंध स्पष्ट होना चाहिए। भारत के 25-30 करोड़ कबाड बेचने वाले फल-सब्जियाँ बेचने वाले मजदुरी-हमाली करने वाले, चुड़ियाँ बेचने वाले, गुब्बारे बेचने वाले पंक्चर निकालने वाले, मोटर दुरूस्त करने वाले आदि मुसलमान आये तो आए कहाँ से?

अगर यह मुसलमान बाहर के मुस्लिम देशो से आये हैं, तो फिर भारत में जो मुसलमानो की जातियाँ पायी जाती हैं- बागबान, अतार, मणीयार, तांबोली, लाला, मंसुरी, छप्परबंद, जुलहा, नाईकवाडी, यह जातियाँ सिर्फ भारत में ही क्यों पायी जाती हैं?

मुस्लिम देशो मे क्यो नही कोई बागबान, छप्परबंद जाति नहीं मिलती? अगर मान लो मुसलमान बाहर से आये भी हों तो कितने? फिर 700-800 सालों में मुसलमानो की संख्या 25-30 करोड कैसे हो गई? 15-20% कैसे? और अगर ब्राह्मण भारत का मूलनिवासी है तो फिर ब्राम्हण मात्र 3% ही कैसे?

(भारत के 97% मुस्लिम ब्राम्हणवाद के अन्याय अत्याचारी वर्णव्यवस्था को त्याग कर समतावादी इस्लाम स्वीकार कर धर्मांतरित हैं। यानि भारत का मुस्लिम भारत का मूलनिवासी ही है)

अगर ब्राम्हण भारत का मूलनिवासी है तो फिर हजारों साल से भारत में होकर ब्राम्हण 3% ही क्यों है?

यह पहेली  तो मुझे समझ में नहीं आ रही है। अगर यह पहेली सुलझे तो भारत की सभी समस्या का समाधान हो जायेगा। मुझे तो लगता है नाम बदलकर हिंदू बनकर हिटलर ही भारत पर राज कर रहा है। वैसे भी कहा जाता है हिटलर ने ही खुद को किडनेप किया था दुनिया को मूर्ख बनाने के लिय। अब हम हिंदू  (शुद्र) –मुस्लिम,  भाई-भाई कहें या ब्राम्हण  (श्रेष्ठ)- हिंदू  (शुद्र) भाई-भाई कहें? भारत मेरा देश है सारे शुद्र भारतीय मेरे भाई हैं।

… .जय भारत …..

Tuesday, October 17, 2017

40 Lessons by Holy ProphetMuhammad (S.A.W)

Biography of Prophet Muhammad - SAW
40 Lessons by Holy ProphetMuhammad (S.A.W)
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01. Refrain from sleeping between fajr and Ishraq, Asr and Maghrib, Maghrib and Isha.
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02. Avoid sitting with smelly people. i.e (onion)
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03. Do not sleep between people who talk bad before sleeping.
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04. Don’t eat and drink with your left hand.
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05. Don’t eat the food that is taken out from your teeth.
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06. Don’t break your knuckles.
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07. Check your shoes before wearing it.
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08. Don’t look at the sky while in Salaat.
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09. Don’t spit in the toilet.
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10. Don’t clean your teeth with charcoal.
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11. Sit and wear your trousers.
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12. Don’t break tough things with your teeth.
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13. Don’t blow on your food when it’s hot but u can fan it.
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14. Don’t look for faults of others.
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15. Don’t talk between iqamath and adhan.
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16. Don’t speak in the toilet.
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17. Don’t speak tales about your friends.
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18. Don’t antagonize your friends.
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19. Don’t look behind frequently while walking.
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20. Don’t stamp your feet while walking.
21. Don’t be suspicious about your friends.
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22. Don’t speak lies at anytime.
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23. Don’t smell the food while you eat.
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24. Speak clearly so others can understand.
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25. Avoid travelling alone.
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26. Don’t decide on your own but do
consult others who know.
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27. Don’t be proud of yourself.
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28. Don’t be sad about your food.
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29. Don’t boast.
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30. Don’t chase the beggars.
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31. Treat your guests well with good heart.
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32. Be patient when in poverty.
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33. Assist a good cause.
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34. Think of your faults and repent.
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35. Do good to those who do bad to you.
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36. Be satisfied with what you have.
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37. Don’t sleep too much - it causes forgetfulness.
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38. Repent at least 100 times a day (Istighfaar).
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39. Don’t eat in darkness.
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40. Don’t eat mouth-full.
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'Send to others to remind them'.
---------------------------------------- -May Allah bless you...! Aameen.

Saturday, April 16, 2016

इस्लाम द्वारा क्रमिक गुलामी निर्मूलन

इस्लाम द्वारा क्रमिक गुलामी निर्मूलन ☝..

मज़दूर किसी भी देश या व्यवस्था का महत्वपूर्ण अंग होता है....

जिस वक्त मुहम्मद(सल.) ने इस्लाम का पैगाम दिया... दूर दराज के इलाकों से लोग पकड़ कर लाये जाते थे उन्हें खरीद कर जिंदगी भर के लिए गुलाम बना लिया जाता था... और फिर उन्हें हमेशा के लिये बस रोटी और कपड़े पर बेगार(गुलामी/सेवा) करनी पड़ती थी...

गुलामो की हालत बहुत ही दयनीय होती थी उनपर तरह तरह के जुल्म होते थे और निहायत सख्त काम के बदले उन्हें भरपेट खाना भी नसीब नहीं होता था...

इस्लाम ने इन गुलामों की आजादी के लिये निहायत खूबसूरत तरीके से काम किया..

1⃣ ✍
मुसलमानों को गुलाम को आजाद करने पर जन्नत की बशारत (शुभ-सूचना) दी गयी....

2⃣
हज़रत बिलाल (रदी.) जो कि एक हब्शी गुलाम थे उन्हें खरीदकर आजाद किया गया और बाद में वे मक्का में अजान देने के ऊंचे दर्जे पर पहुंचे...

   कुरआनमें गुलामों से अच्छा सुलूक करने व उन्हें आजाद करने संबंधी आयते...✍

3⃣
        तुममें जो बेजोड़े (UNMARRIED)के हों और तुम्हारे ग़ुलामों और तुम्हारी लौंडियों मे जो नेक और योग्य हों, उनका विवाह कर दो। यदि वे ग़रीब होंगे तो अल्लाह अपने उदार अनुग्रह से उन्हें समृद्ध कर देगा। अल्लाह बड़ी समाईवाला, सर्वज्ञ है ...
(कुरआन 24:32)

4⃣
... और जिन (लौंडी/गुलाम) पर तुम्हें स्वामित्व का अधिकार प्राप्त हो उनमें से जो लोग लिखा-पढ़ी (AGREEMENT) के इच्छुक हो उनसे लिखा-पढ़ी कर लो, यदि तुम्हें मालूम हो कि उनमें भलाई है। और उन्हें अल्लाह के माल में से दो, जो उसने तुम्हें प्रदान किया है। और अपनी लौंडियों को सांसारिक जीवन-सामग्री की चाह में व्यविचार के लिए बाध्य न करो, जबकि वे पाकदामन रहना भी चाहती हों। औऱ इसके लिए जो कोई उन्हें (मजबूर) बाध्य करेगा, तो निश्चय ही अल्लाह उनके बाध्य किए जाने के पश्चात अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है (अर्थात् वे पीड़ित गुनहगार नहीं होंगे)
कुरआन (24:33)

5⃣
इस्लामी काल में किसने कितने गुलाम आज़ाद किए...❓..

पैगम्बर मुहम्मद (सल.)       63

खलीफा अबूबकर (रदी.)     63

अब्दुर्रहमान बिन औफ़ (रदी.)   30,000

हाकिम बिन हुज़ाम (रदी.)  100

हज. अब्बास (रदी.)          70

माँ आयशा (रदी.)              69

अब्दुल्लाह बिन उमर (रदी.) 100

हज. उस्मान (रदी.)  हर शुक्रवार 1

हज. ज़ुल-किलाह (रदी.) 80,000 (1ही दिनमें आजाद किए)

✍✍

इस तरह गुलामो को आजाद करने की परंपरा ही शुरू हो गई....

इन तथ्यों से यह साफ हो जाता है कि अल्लाह हर शख्स को आजाद देखना चाहता है....और चाहता है कि सबको अपनी जिंदगी गुजारने का हक मिले...

Thursday, April 7, 2016

The Hanafiyyah school

Hanafi
General Information

Aba Hanafa, Nu'man Abu Hanifah (d. 767)

DoctrinesThe Hanafiyyah school is the first of the four orthodox Sunni schools of law. It is distinguished from the other schools through its placing less reliance on mass oral traditions as a source of legal knowledge. It developed the exegesis of the Qur'an through a method of analogical reasoning known as Qiyas. It also established the principle that the universal concurrence of the Ummah (community) of Islam on a point of law, as represented by legal and religious scholars, constituted evidence of the will of God. This process is called ijma', which means the consensus of the scholars. Thus, the school definitively established the Qur'an, the Traditions of the Prophet, ijma' and qiyas as the basis of Islamic law. In addition to these, Hanafi accepted local customs as a secondary source of the law.

History

The Hanafi school of law was founded by Nu'man Abu Hanifah (d.767) in Kufa in Iraq. It derived from the bulk of the ancient school of Kufa and absorbed the ancient school of Basra. Abu Hanifah belonged to the period of the successors (tabiin) of the Sahabah (the companions of the Prophet). He was a Tabi'i since he had the good fortune to have lived during the period when some of the Sahabah were still alive. Having originated in Iraq, the Hanafi school was favoured by the first 'Abbasid caliphs in spite of the school's opposition to the power of the caliphs.

The privileged position which the school enjoyed under the 'Abbasid caliphate was lost with the decline of the 'Abbasid caliphate. However, the rise of the Ottoman empire led to the revival of Hanafi fortunes. Under the Ottomans the judgement-seats were occupied by Hanafites sent from Istanbul, even in countries where the population followed another madhhab. Consequently, the Hanafi madhhab became the only authoritative code of law in the public life and official administration of justice in all the provinces of the Ottoman empire. Even today the Hanafi code prevails in the former Ottoman countries. It is also dominant in Central Asia and India.

Symbols
The Hanafi school of jurisprudence has no distinctive symbol system.

Adherents

There are no official figures for the number of followers of the Hanafi school of law. It is followed by the vast majority of people in the Muslim world.

Headquarters / Main Centre

The school has no headquarters as such. It is followed by the majority of the Muslim population Of Turkey, Albania, the Balkans, Central Asia, Afghanistan, Pakistan, China, India and Iraq.